गणतंत्र की पुकार
गणतंत्र की पुकार
फिर आया गणतंत्र दिवस,
आज़ादी के कुछ सपने लेकर।
संविधान की राह पकड़कर,
चलने होंगे सब को मिलकर।।
देश तभी विकसित होगा,
जब जनता जागरूक होगी।
वरना नए नए गोरों से,
शोषित और पीड़ित होगी।।
लोकतंत्र बहरा यदि होगा,
संविधान मर जायेगा।
देश लूटेरा देश लूटकर,
वतन में कहर मचाएगा।।
देश की धड़कन मंद हुई तो,
फिर कुछ नहिं कर पाओगे।
जागो, वरना देश के वासी,
हाथ मीज रह जाओगे।।
आज़ादी का एहसास कराने,
फिर गणतंत्र दिवस आया।
झांक गिरे बां अपना देखा,
खुद को बहुत विवश पाया।।
देश बँट रहा दो भागों में,
एक अमीर और एक गरीब।
दोनों के सामंजस्य से ही,
खिल सकता है देश नसीब।।