गज़ल
गज़ल
हम उनसे ऐसे कुछ दिल लगा के बैठे हैं।
आंखों में अपने नक्शा चुरा के बैठे हैं।
सुना यें हाले दिल का दर्द अपने कैसे ?
वह है ऐसे की नजरें झुका के बैठे हैं।
एक नजर देख लेते तो बेहतर होता।
जाने क्यों आज ओ मुंह छुपा के बैठे हैं ?
दिल जलता है मचलता है जिगर अपना।
ओ है कि किसी और को बुला के बैठे हैं।