गज़ल
गज़ल
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तुम हृदय को गृह-पता क्यों नहीं देते
दुःखी मन को आज हँसा क्यों नहीं देते
रूठे रहते हो मुझसे कुछ कहते नहीं
मेरी ग़लती की युँ सज़ा क्यों नहीं देते
घुटते रहते हो तुम तन्हा प्रिय मेरे
वो कैद दिली राज़ बता क्यों नहीं देते
मोहब्बत की ताकत को कम न समझो तुम
प्यारी प्रिय मनुहार जता क्यों नहीं देते
कब तक न कहोगे दिल की बात सखे तुम
ख्वाब सब सफ़ल आज बना क्यों नहीं देते।