गजल।
गजल।
संभल कर चल इस दुनिया में, कहीं कांटे न चुभ जायें।।
मंजिल पास ही गुरु की है, डगर भी है बड़ी कोमल।
मगर जो वासना है मन की, कहीं कांटे न बन जाए।।
मिलती है बड़े नसीबों से, गुरु ज्ञान की दौलत।
संभल कर रख उस दौलत को, कहीं अहंकार न आ जाए।।
जिन्हें तू गैर समझता है, रुकावट वे नहीं तेरे।
जिन्हें तू अपना समझ बैठा, कहीं रोड़ा न बन जाए।।
मिलेगी हर तरह की शोहरत, करेगी पथभ्रष्ट तेरा।
डटेंगे शूरवीर ही इस पथ पर, चाहे सब ख़ाक में मिल जाए।।
सिवा अपने गुरु के न कुछ भी, हाल बयां कर दिल का।
नज़र के सामने होकर भी कहीं बेनज़र न हो जाए।।