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Neeraj pal

Abstract

5.0  

Neeraj pal

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गजल।

गजल।

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संभल कर चल इस दुनिया में, कहीं कांटे न चुभ जायें।।

मंजिल पास ही गुरु की है, डगर भी है बड़ी कोमल।

मगर जो वासना है मन की, कहीं कांटे न बन जाए।।


मिलती है बड़े नसीबों से, गुरु ज्ञान की दौलत।

संभल कर रख उस दौलत को, कहीं अहंकार न आ जाए।।

जिन्हें तू गैर समझता है, रुकावट वे नहीं तेरे।

जिन्हें तू अपना समझ बैठा, कहीं रोड़ा न बन जाए।।


मिलेगी हर तरह की शोहरत, करेगी पथभ्रष्ट तेरा।

डटेंगे शूरवीर ही इस पथ पर, चाहे सब ख़ाक में मिल जाए।।

सिवा अपने गुरु के न कुछ भी, हाल बयां कर दिल का।

नज़र के सामने होकर भी कहीं बेनज़र न हो जाए।।


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