ग़ज़ल
ग़ज़ल
आपका रुठना मनाना हमें भी याद है
आपके दीदार में तड़पना भी याद है।
चुप क्यों हैं कुछ पन्ने ज़रा आज खोल दिजीए
चेहरे से सरकता घुंघटा भी याद है।
आपकी मासूमियत कातिल है इस कदर
आपकी दिलकश अदा का ज़माना याद है।
झिलमिलाती शाम है शोख़ रंगीली मगर
साँझ काजल सी ,नयन अश्क़ भरे से याद
है।
आफ़ताबों को रश्क है मगर जाए कहाँ
बरसता सावन हरी मेहँदी सा याद है।।
सवि न जाने किस जहाँ में समाती ही गई
आप बहकाते रहे वो फ़साना याद है।