गजल(ख्वाब)
गजल(ख्वाब)
बचपन गुजारा था जिनके संग
मिलने के लिए दिल मजबूर था,
मिलते चाहे ख्वाबों में मिलना जरूर था,
वायदे किए थे ऐसे तो वायदों को निभाना जरूर था।
हजारों सहे नखरे जिनके हमने,
एक बार हम रूठ गए तो उनको भी मनाना जरूर था।
रहे अपनी ही अकड़ में वो
अपने नखरों पर उनको भी गुरूर बहुत था,
ठुकराना हमको भी आता था मगर हमें दोस्ती का सरूर बहुत था।
गुस्से के तूफान गिरा देते हैं जिस पेड़ को,
कभी सोचा उस पर कुछ परिन्दों का ठिकाना जरूर था।
देख लेता था हजारों नखरे जो आईना तोड़ दिया
तो कह दिया आईना पुराना बहुत था।
निभा न सके उम्र भर यही रंज था सुदर्शन,
मजबूरियां ही कुछ ऐसी थीं क्या यह भी बताना जरूर था।
करता रहा है बेईमानी ठगी सदा के लिए ज्यों ही इंसान
भूल गया हर जगह हर बस्ती
उसका आशियाना जरूर था।