गजल(हिदायत)
गजल(हिदायत)
ईशारों ही ईशारों में कुछ ऐसी चाहत थी।
बात मुहब्बत की नहीं एक हिदायत थी।।
न इधर के रहे न उधर के हम।
बात यूं ही करके लटकते रहे हम।।
याद हर पल जिगर को सताती रही, न रोते रहे न
हंसते रहे पर शिकायत उनकी आती रही।
दर्द इस कदर बढ़ गया,
आंसूओं का आना भी कम पड़ गया,
छीन ली लबों की मुस्कराहट
ऐसी नसीहत दे गये हमको।
कहा कुछ़ भी नहीं नफरत है
या उल्फत है, अजीब सा तूफान दे गये हमें,
इशारों ही इशारों में कुछ ऐसी नसीहत दे गये हमें।
किसी के कैसे हो जांए सुदर्शन, जिगर जब ऱख
दिया गिरवी भगवान के
फिर क्या छुपाऐं क्या बताएं
वोही कर देगा माफ हमको
चाहे उल्फत या नफरत की हों आदांऐ।