गीत
गीत
तुम होते हो तो पूरी हो जाती अभिलाषा
और समझ में आने लगती है आंखों की भाषा।
गन्ध भरी सम्भ्रान्त हवायें तेरे ही गुण गाती
कली, फूल, भौंरे तितली सब, तुममें राग मिलाती
नील गगन से इन्द्रधनुष भी पांव पांव आ जाता
जर्रा जर्रा सुरभित होकर मन्द मन्द मुस्काता
तुम मिल जाते तो मिल जाती भूली बिसरी आशा
और समझ आने लगती है आंखों की भाषा।
जीवन धू धू करके जला तो गूंज उठी किलकारी
यादों के इस महाकुम्भ में मिल गयी याद तुम्हारी
लुप्त हुआ वो सब कुछ जो था, आया कुछ अनजाना
निरख रहे टकटकी लगाये तो कुछ कुछ पहचाना
तुम हंसते हो तो मिल जाती और दिलासा
और समझ में आने लगती है आंखों की भाषा।