घुटन
घुटन
स्त्री पिलाती है दूध
खिलाती है खेल
पालनों से उठाकर सिखाती है चलना।
फिर भी घुटन से जुड़े हाथ होते हैं उसके
वह दरवाज़े पर टंगे हाथों को ले आती है
जो बना देते हैं घृणा के निशान उसके चेहरे पे।
वह उन हाथों को थाम कर रखती है और
पालने में शिशु को थमा देती है अंगुली।
अब किसी के लिए उसके घर में जगह नहीं
और महसूस करती है वो होंठों पे रखी हुई ज़िंदा अंगुली।
कि कुछ कह न पाए वह।
शब्द अंदर ही रह जाते हैं
मन के साथ चलते-चलते
आत्मा तक पहुँच जाते हैं।
शिशु हो जाती है किशोरी
अपने हाथ देती है वह स्त्री को
थाम लेती है उसके हाथ मजबूती से व प्रेम से
और अगले ही पल खत्म हो जाती है उसकी हर घुटन।