घरौंदा
घरौंदा
विधा-हाइकु
उसने ख्वाबों,
सा एक सुंदर था,
घर बनाया।
उसमें बस,
प्रेम मेहराबों से
द्वार सजाया।
कोना-कोना था,
महकता खुशबू,
लिए प्रेम की।
उर जलती,
स्नेह ज्योत सदैव,
था परिवार।
सोचा कभी न,
उसने कोई ऐसा
दिन आएगा।
तिनका उड़,
बहेगा दूर कहीं,
आसमान में।
आशियाना यूं,
बिखर जाएगा औ,
मेहराबें भी।
छूट जाएंगी,
अतीत बनी यादें,
जमीन में।
रह गए ये,
ख्वाबों के महराब,
अधूरे अब।
बुनियादें जो,
थी बनायी गहरी,
मिट्टी में दबी।
झाँक झाँक के,
कह रही खिड़की।
हुई अधूरी।
झरोखे नहीं
बसते आंगन में,
तोड़ दिए वे।
कैसे बैठे तू,
कागा छत मुंडेर,
कौन कहे आ।
क्या तिनकों का,
है कोई मोल नहीं,
इस जग में।
बनते हुए,
ख्वाबों की तस्वीरों से,
टूटते हुए।
निर्मम हाथों,
की जंजीरों ने घोटे,
उनके गले।
मेहराबों की,
कहानी कहती ये,
टूटी निशानी।