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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

घर मे बैठे कुछ गद्दार

घर मे बैठे कुछ गद्दार

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सीमा से ज्यादा तो आजकल घर में बैठे कुछ गद्दार है

मारो उनको फिर पहनाओ मेरी भारत मां को हार है

वो लोग जहरीले सांपों से भी अधिक खतरनाक है

ये स्वार्थ के लिये चलाते साम्प्रदायिकता की तलवार है


ये लोग जिस थाली में खाते है,उसमें ही छेद करते है,

ऐसे देशद्रोहियों पे लाठी मारने को रहो सदा तैयार है

ये लोग हमको तो लगते है गीदड़ के ही अवतार है

सीमा से ज़्यादा तो आजकल घर मे बैठे कुछ गद्दार है


कब तक इन जयचंदो को आप लोग पनाह देते रहोगे,

कब तक इनके द्वारा माँ का अपमान देखते रहोगे,

उठो हिंद के शेरों इन गीदड़ों पे करो तुम जोर से वार है

अपनी भारत माँ के दूध का बताओ आज चमत्कार है


सीमा से ज्यादा तो आजकल घर मे बैठे कुछ गद्दार है

मारो उनको फिर पहनाओ मेरी भारत मां को हार है।



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