घर बड़ा हो गया है
घर बड़ा हो गया है
जब दीवारे थी मिट्टी की
छत थे फूस या खपड़े के
तब आपस के रिश्ते थे गहरे से
भाई-भाई में प्रेम था
माँ-बाप के लिए दिल में स्नेह था
बच्चे एक हीं घर में
लड़ते-झगड़ते थे
अपनी मिट्टी में
खेलते थे बड़े होते थे
मिट्टी का मोल समझते थे
माँ-बाप, चाचा-चाची
दादा-दादी, भाई-बहन
से प्रेम करते थे
अब जब दीवारे हो गए हैं ईंट के
गाँव के हर छत हो गए हैं कन्क्रीट के
तब आपस के रिश्ते और
लोगों के दिल भी कठोर हो गए हैं
इन्ही ईंट और कन्क्रीट की तरह
अब भाई-भाई से जुदा हो गया है
बच्चों को
अपना-पराया का भेद हो चला है
बंटवारे में किसी के
हिस्से में "माँ" आई है
तो किसी को हिस्से में
"बाप" का भार मिला है
बदलते वक़्त के साथ-साथ
बदल चुकी है तस्वीर गाँव की
गाँव में अब रिश्तों का
मोल छोटा हो गया है
पर गाँव में अब हर किसी का
घर बड़ा हो गया है |