ग़ज़ल
ग़ज़ल
सिर्फ चलता न है शाइरी के लिए
है क़लम ये मेरा मुख़्लिसी के लिए
हो बला की कोई ख़ूबसूरत हसीं
दिल मेरा पर है उस साँवरी के लिए
जान भी दाँव पर हम लगा देते हैं
और क्या हम करें दोस्ती के लिए
बैठे रहने से क्या कुछ मिलेगा यहाँ
चल पड़ो आलम-ए-सरख़ुशी के लिए
गीत ये आशिक़ों के दिलों में बसा
इक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए
जो बना दे उसे ख़ुद सा मीठा कमल
बह्र तरसा सदा उस नदी के लिए।