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Dinesh paliwal

Others

4.7  

Dinesh paliwal

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।। ग़ज़ल ।।

।। ग़ज़ल ।।

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तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक,

मुझे रात की रोशनी भा रही है,

जमाने की खुशियां तुम्हारे लिए हैं,

हमें रास तन्हाइयां आ रही हैं।।


तुम्हारे बिना जिंदगी यूँ तो हमदम,

किसी भी सज़ा से कम तो नहीं थी,

दीवाना दिल इस का आदी हुआ अब,

दर्द की आह से भी दुआ आ रही है।।


हमसफर तुम रहे जबतलक इस सफर में,

साहिल कभी दूर लगता नहीं था,

जो मंझधार में आज कश्ती ये मेरी,

नई धार पर ये अब बहे जा रही है।।


गीत जो थे कभी तेरी खुशबू से शोभित,

अधर जिनको गा गा के थकते नहीं थे,

अब जो टूटी है इस दिल के तारों वीणा ,

नित नए राग अब जिंदगी गा रही है ।।


मेरे हाल पर हो न कोई रहम अब,

वफ़ा बेवफाई से तेरी हमने करली,

ये किस्सा यहीं बस खत्म हो रहा है,

उदासी की महफ़िल कहर ढा रही है।।


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