ग़ज़ल
ग़ज़ल
कोई गुलशन हमेशा ज्यों फला फूला नहीं रहता
मुहब्बत का समय वैसे ही इक जैसा नहीं रहता
कभी दिन के उजालों में कभी रातों में आ जाती
तेरी यादों पे कोई भी कभी पहरा नहीं रहता
दिखाता है बड़ी हिम्मत चलाता बेधड़क सब पर
तुझी पर ज़ोर क्योंकर मेरे इस दिल का नहीं रहता
ज़माने भर के बारे में हमेशा सोचता है वो
ख़ुदा का बंदा सबकी फ़िक्र में सोया नहीं रहता
जवाब उसको मैं क्या दूँ कुछ नया ही पूछ बैठा वो
सवाल उसका हमेशा यूँ तो पेचीदा नहीं रहता
नसीब औरों के जैसा क्यों नहीं लिखता ख़ुदा मेरा
मुहब्बत पाक है मेरी वो क्यों मेरा नहीं रहता
कमल ख़्वाबों में उससे रोज मिलना हो ही जाता है
मगर क्यों सामने उसका कभी चेहरा नहीं रहता।