ग़ज़ल
ग़ज़ल


हो मेरे दिल की अमानत दोस्तो।
हर घड़ी रहना सलामत दोस्तो।
रह सके सब दोस्त मिलकर प्यार से,
दिल में ऐसी है इमारत दोस्तो।
दोस्तों के वास्ते स्वीकार है।
दुश्मनों की भी इताअत दोस्तो।
रूठने का दोस्ती में हक़ तो है।
रूठने की हो वज़ाहत दोस्तो।
हो भले नाराज़ चाहे लाख वो।
फिर भी उनसे है मुहब्बत दोस्तो।
साथ जब जब भी तुम्हारे हो "कमल"।
ये जहां लगता है जन्नत दोस्तो।