ग़ज़ल
ग़ज़ल
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उससे बंधा मेरा ऐसा रिश्ता ,
वो मुझको लगता है अब फरिश्ता।
उसकी मेरी बात क्या कहें ,
जैसे प्यास और पानी का रिश्ता।
दर्द का जब ज़बर देखता हूँ ,
सहलाता है आहिस्ता आहिस्ता।
नींद की बात क्या कीजिये ,
जैसे बच्चे और कहानी का रिश्ता।
मुझसे जुड़ा क्या होगा अब ,
जैसे दिल और धड़कन का रिश्ता।
रोम-रोम कह उठता है मेरा ,
ये तो जनम-जनम का है रिश्ता।