ग़ज़ल – नयी शुरू'आत
ग़ज़ल – नयी शुरू'आत
अज़ादी की असली वो सौग़ात होगी।
नयी जब असल में शुरू'आत होगी।
न भूखे मरेंगे, न अनपढ़ रहेंगे,
ग़रीबों की इतनी तो औक़ात होगी।
बराबर के मौक़े सभी को मिलेंगे,
नहीं नौकरी पर लिखी जात होगी।
चुनेंगे सभी मिल के सरकार ऐसी,
सदन में हमारी ही हर बात होगी।
न पहरे के पीछे छिपे होंगे मंत्री,
बिना रोक टोके मुलाक़ात होगी।
सभी अफसरों को कड़ी हो हिदायत,
तभी सच में जनता की ख़िदमात होगी।
बनेंगी यहीं पर सभी चीज़ अपनी,
विदेशों से इक भी न आयात होगी।