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Vivek Agarwal

Romance

4.8  

Vivek Agarwal

Romance

ग़ज़ल - मेरी मुहब्बत नयी नहीं है

ग़ज़ल - मेरी मुहब्बत नयी नहीं है

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बड़ी पुरानी है ये कहानी, मेरी मुहब्बत नयी नहीं है।

जो फाँस बन के गड़ी हुयी है, जिगर में हसरत नयी नहीं है।

 

कभी लिखे थे दिलों पे अपने, जो नाम इक दूसरे के हमने,

नहीं धुलेंगे वो आंसुओं से, छपी इबारत नयी नहीं है। 

 

न तू ये जाने जगह जो मैंने, तेरे लिये थी कभी बनायी,

सजा के दिल में तुझे है पूजा, मेरी इबादत नयी नहीं है।

 

दवा नहीं मिल रही है इसकी, बुख़ार हमको जो हो गया है,

है आग सीने में इक पुरानी, मेरी हरारत नयी नहीं है।

 

सभी हैं कहते कि भूल जाऊँ, वो साथ देखे हसीन सपने,

नहीं है मुमकिन इसे लुटाना, ये मेरी दौलत नयी नहीं है।

 

यूँ पास आना यूँ दूर जाना, नज़र मिलाना नज़र चुराना,

यूँ पल में तोला यूँ पल में माशा, तेरी ये फ़ितरत नयी नहीं है।

 

क्यूँ मिरा दिल तुझे ही चाहे, ये बात मुझको समझ न आये। 

हसीन मुखड़े बहुत से देखे, तू ख़ूबसूरत नयी नहीं है।

 

नहीं झुका था नहीं झुकेगा, ये सर हमारा किसी के आगे,

ये आज कल का नहीं है जल्वा, ये इस्तक़ामत नयी नहीं है।

 

जो बात उसको बता न पाये, सुना रहे हैं यहाँ सभी को,   

ग़ज़ल लिखी आज फिर से 'अवि' ने, खुदा की रहमत नयी नहीं है।

 

- विवेक अग्रवाल 'अवि'

बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू मुख़ल्ला


इस ग़ज़ल को इस गाने की तर्ज़ पर गाया जा सकता है। 

जिहाल-ए मुस्किन मैं कुन बा-रंजिश, बेहाल हिजरा बेचारा दिल है

सुनाई देती है जिस्की धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है


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