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Amit Tiwari

Drama

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Amit Tiwari

Drama

ग़ुसलखाना और विलायती बर्तन

ग़ुसलखाना और विलायती बर्तन

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देखो ग़ुसलखाने से जिसमें

संगमर्मर का पत्थर

और विलायती बर्तन लगा है

एक अमीर झाँक रहा है

जिंदगी भर कि लगी मेहनत

को ताक रहा है


माँ ने चूल्हा तोड़ दिया की

तड़के के लिए घी कम है

बाप ने सर घूमा लिया और

अब वो अपनी जेब से झाँक रहा है


यह देखकर दिल पिघल गया

अपने आप पर बने रहने का

वादा बदल गया 

निकल पड़े कि एक

विलायती संगमरमर का

ग़ुसलखाना बनवायेंगे

माँ को रोज़ाना तड़के कि

दाल खिलाएंगे


आखिर बेटा बड़ा इसीलिए हुआ है

सारी मेहनत पढ़ाई इसीलिए किया है


बीवी के नैन बड़े तीखे हैं

उसकी मादक महक के

सामने सारे सुख फीके हैं

दिन बीत चुके भोग करते करते

मुंह मुरझा गया सम्भोग करते करते

सर पर चंद बाल ही बचे हैं

अब तो बस बीवी और बच्चों के खर्चे हैं


मन तो करता है भाग

जाऊँ कहीं

दूर जहाँ कोई न हो

मगर बेड़ियाँ गले में है

और कुछ तो क़ानूनी पर्चे हैं


रोज़ाना बदबू झेलना आम हो गया है

अब तो अपना हर धंधा बदनाम हो गया है

बीवी और बच्चों का बोझ तो बोझ

समाज की सोच का बोझ भी बढ़ गया है


निकले थे कि नाम मिलेगा

और खूब कमाएंगे

क्या पता था अपनों को ही

फूटी आँख न सुहायेंगे


काश उस तड़के की दाल के

महक में न बहा होता

बाप की जेब की तड़प और सहा होता

जान लेता की असलियत क्या है

यह है सभी का ढर्रा इसमें नया क्या है


यह सब करना अपनी ही लाश को

अमली जामा पहनना है

खुद अपनी कब्र का रास्ता बनाना है


दिखाई पड़ रहा है जब जिंदगी ऐसी ही है

छोड़ दे रुख बदल ले अब सोच कैसी है


या तो जिंदगी के रंगमंच का हिस्सा बन जा

नहीं तो, चल उसके साथ और

खोया हुआ किस्सा बन जा


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