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Shailaja Bhattad

Drama Inspirational

5.0  

Shailaja Bhattad

Drama Inspirational

गाना~३

गाना~३

1 min
5.4K


अँधेरे को थामे,

जो बढ़ रही थी आगे।

सुलझा रही है अब,

सारी उलझनों के धागे।


बेतरतीब-सी जिंदगी को,

सम्त मिल रही है।

खुशियों की अब वो,

मयार चढ़ रही है।


संदूक में कैद थी जो जिंदगी,

नई तरंगों से भर रही है।

विश्वास की रोशनी से,

स्याही का हर धब्बा पोंछ रही है।


इस्तराब से लगती रही गले,

संगीनियों के संग थी जो जिंदगी।

हरफ़िज़ा को रोशन बना रही है,

रंगीनियों की महक ला रही है।


बूढ़ी-सी बन गई थी जो जिंदगी,

उम्मीदों से जगमगा रही है।

दुआओं की रहबर बन,

लहरों में बह रही है।


राहें संभाल रही है,

जीवन सँवार रही है।

तंग गलियों में भटकती रही,

तंग कमीज़-सी,

खिंचती रही अब तलक।


जीने का अंदाज,

सीखा रही है यही जिंदगी।

बदले-बदले से अंदाज में,

खुद से ही मिल रही है।


पल-पल टूटकर बिखरती-सी,

काँच-सी थी जो जिंदगी।

आज मुकम्मल हो रही है,

सतरंगी-सी बन रही है।


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