फ़ितरत
फ़ितरत
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फ़ितरत बदलती नहीं दोस्तों, रहना ज़रा सम्भल कर,
लोग आएंगे पास तुम्हारे, चोला बदल – बदलकर ।।
लोगों के लफ्ज़ और बातें भी ,दिल जीत सकते थे,
मगर वो हर मोड़ पर टकराए, लहज़ा बदल बदलकर।।
ये जिस्म तो है मिट्टी, सब ख़ाक के बने हैं,
ना हाथ में वक्त है किसी के , ना हाथ में मुकददर।।