फ़ागुन
फ़ागुन


रंग - बिरंगा फागुन आया,
देखो चेहरे हो गये लाल,
चहुँ तरफ अबीर उड़े है,
गैर न कोई आज,
महक उठे सब बाग़ - बगीचे,
हर्षाये नर - नार,
चंग की थाप पर झूम के नाचें,
दे - दे हाथों पे ताल,
मन भी रंग गया,
तन भी रंग गया,
रंग गये सब नर - नार,
मैल धुले मन के उनके,
हो रहीं मान - मनुहार,
जो भी गिले - शिक़वे थे,
रंग - संग बह गये आज,
ताल दे - दे सभी नाचें,
जैसे हों पांच साल के आज,
खग राग - मल्हारी गावें,
सरसों फूली आज,
पीली चुनरियाँ ओढ़ के,
मद - मस्तानी चाल,
बूढ़े - बुढ़िया, बच्चें मस्तायें,
किसको दे दोष,
न ही किसी की होशियारी,
ये फागुन का है जोश,
भांग नशे में मदमस्त डोले,
पकड़ लई है नार,
लत्ता - कपड़ा रंग - दीने वा के गाल,
सर्र - सर्र करते सब घूमें,
काहु को काहु से ना लाज़,
अंगिया भीगी, चोली भीगी,
भीगे वा के केश,
गले मिल - मिल बधाइयां देवें,
"शकुन" मिट गये सभी क्लेश।