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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4.1  

Ratna Kaul Bhardwaj

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एक सवाल परछाई से

एक सवाल परछाई से

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आज अपनी परछाईं से 

मैंने यूं ही पूछ लिया 

तेरा मेरा रिश्ता  

कैसा ईश्वर ने बनाया 

क्यों हर दम चली 

आ रही हो मेरे साथ 

चाहे दिन का हो उजाला 

या हो ढलती सांझ 


थोड़ा मुझसे दूर भी रहो 

ज़रा मैं थोड़ा चैन पाऊँ 

तुम अपने रास्ते चलो

मैं अपने रास्ते जाऊँ 

आत्मविश्वास में अपना 

अपने दम पे जगाऊँ

तेरे एहसास के बिना 

कुछ अलग सोचों


मेरी परछाईं पहले मुस्कुराई 

फिर प्यार से बोली

तेरा मेरा अलग होना

कभी मुमकिन नहीं 

तेरी ज़िन्दगी की रफ़्तार 

का मैं अटूट एक हिस्सा हूँ 

जो तेरे से अलग होए

नहीं मैं वह किस्सा हूँ 


ईश्वर का बनाया हुआ 

यह देवीय चक्र है

याद रख , ईश्वर को 

हमेशा तेरी फ़िक्र है 

तू जीवन की राह में 

कभी न अलग पड़ जाये 

तेरे हौसले न कभी 

मंद पड़ जाये 

ज़रा मुड़ के देख 

कौन है खड़ा तेरे साथ 

तेरा मेरा रिश्ता ही 

है हमारी असली साख 

हँसते - रोते न जाने कितने साल 

कितने मौसम हमारे निकल गए 

कभी गिरे, कभी संभले

कभी राह में फिसल गए 


उसकी बातें सुनकर मैं

भावुक बहुत हुई 

पूछ बैठी मैं एक सवाल 

देते हुए दुहाई 

कि अंधकार में साथ छोड़ना 

कहाँ की रीत है 

तुम ज़रा समझा दो मुझे 

कैसी यह प्रीत है 

मेरी परछाईं न जाने 

क्यों तब से चुप है 

और मेरा मन भी सवालों 

के बवंडर में चुप है


आज मैंने अपनी परछाई से...



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