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Kanchan Jharkhande

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4.3  

Kanchan Jharkhande

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एक संदेश

एक संदेश

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मेरा एक सन्देशा पहुँचा दो,

सूरज से कहना ज्यादा चटका न कर

चांद से कहना ज्यादा मटका न कर

सुबह से कहना इतनी जल्दी क्यूँ आती है।

रात से कहना तेरी शीतलता भाती है।

गगन से कहना तुम अंनत विस्तार हो चले

धरती से कहना तुम क्यों मायूस हो गये

पौधों से कहना आज कल कहाँ चले गये

प्रकृति से कहना तुम क्यों बिखर गये

प्रदूषण से कहना तुम क्यों निखर गए

नदियों से कहना थोड़ी स्वच्छता से बहो

तूफान से कहना ज़रा औकात में रहो

बरसात से कहना जरा नियमित बरस

फसलों को मत कर तहस नहस

फूल से कहना तुम आज भी खूबसूरत लगते हो

तितलियों से कहना कितनी मासूमियत रखते हो

हवाओं से कहना कितनी सुर्खियों में बहते हो।

बनावट की दुनिया है ज़रा सम्भल के रह, 

"कंचन" से कहना क्यों इतनी सादगी से रहते हो। 



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