एक शख्स
एक शख्स
क़ैद कर ली सारी यादों को दिले क़सल में
वो एक शख्स मिरा जिनकी मासtमियत है चश्म पर
गलतियों की इशलाह करता बड़े सलीके से
वो एक शख्स मिरा जिन्हें विश्वास है अपने पैमाने पर
हमेशा सजी रहती हंसी इनके चेहरे में
वो एक शख्स मिरा जिन्हें मलाल नहीं कभी अपने ग़म पर
सजी है बज़्मे-ए-अंजूम उनके चारो और
वो एक शख्स मिरा जिन्हें यक़ीन है अपने जोड़ों पर
हर ग़म दम तोड़ देती है ममता की छांव में
वो शख्स मिरा, साहिल है दो, दरिया के।