एक रात का मुसाफ़िर।
एक रात का मुसाफ़िर।
एक रात का मुसाफ़िर तो बन कर गया था,
हुआ कुछ ऐसा कुछ दिन ही रहना पड़ा था।
चाँदनी रात को पहली बार उनसे मिला था,
चाँदनी रात में जैसे चाँद से रूबरू हुआ था।
रिश्तेदारी में पड़ोसी की वो बड़ी बेटी थी,
बहुत ही सुंदर चाँद का टुकड़ा लगती थी।
सारी रात हम दोनों को नींद नहीं आई थी,
छत पर आमने-सामने वो रात बिताई थी।
सुबह सैर करने वो छोटे भाई के साथ गए,
पीछे-पीछे हम भी उनके पार्क पहुँच गए।
वहाँ पर योगा व्यायाम साथ-साथ करते गए,
प्यार का इज़हार करना पर भाई से डर गए।
छोटे भाई को भी शक हम पर हो गया था,
अगले दिन उन्हें बैग समेत जाते देखा था।
पता चला पढ़ाई करने के लिए वो चले गए,
हम भी बोरिया बिस्तर बाँध वापिस आ गए।