एक पल का आदमी
एक पल का आदमी


हर कोई लगता यहाँ पे एक पल का आदमी।
हाड़ मिट्टी का बना है बंधु जल का आदमी।
बुलबुले सी जिन्दगी है, वक्त ज्यादा है नहीं
लुत्फ क्यों लेता नहीं हर एक पल का आदमी।
उड़ रहा ऊँचे गगन में सोच है छोटी मगर,
ख़ुद को तुर्रमखाँ समझता आजकल का आदमी।
कर रहे बातें बहुत हम, चाँद तारों की
मगर बन के रोड़े ये खड़ा अपने बगल का आदमी ।
खत्म करना चाहती है, पुष्प भी ये रंजिशें
पर सुधरता ही नहीं है, आज छल का आदमी ।