एक मुट्ठी रेत
एक मुट्ठी रेत
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ज़िन्दगी एक मुट्ठी रेत सी
फिसल रही है हाथ से
हम चाहकर भी उसके
फिसलने को रोक नहीं पा रहे है
असमर्थ है या यह फिसलन ही
हमारे जीवन का अर्थहीन अंत बन रही है
कुछ कह नहीं सकते
या हमारा विमर्श हमें रोकता है
हमारा बुद्धिजीवी साहित्य
इसके कच्चेपन को अस्वीकार्य
तौर पर ही प्रस्तुत करता है
मैं या तुम कोई भी हो
सबंन्ध इसका सिर्फ हम से नहीं है
बल्कि हम सब से है
इसका अर्थ यह हुआ कि
सम्पूर्ण जगत इस विचार को
इस नकारे हुए विचार को
अर्थ देने की नाक़ाम कोशिश में जुटा है
जो कि एक छलावा मात्र है.