एक कड़वा सच
एक कड़वा सच
जीवनयापन हो गया, दुश्वर
लेकिन फिर भी जिंदा हूँ
जानता हूँ जाना एक दिन
देह के मोह में पड़ गया हूँ||
रंग-बिरंगे रिश्ते-नाते
रंग में इनके रंग गया हूँ
मनमोहक छवि है सबकी
प्रेम में इनके पड़ गया हूँ||
बेशकीमती जिंदगी है ये
खुलकर इसको जीता हूँ
छूट न जाए जीने के पल
पूर्णत: इसमें रम गया हूँ||
अद्भुत चीज है बचत भी यारों
चाहे, रिश्तों की ही क्यों न हो
उतार-चढ़ाव तो आते, जीवनभर
शामिल, अनुभव में अपने कर गया हूँ||
खुशबू फैला दूँ बहती फिज़ा में
व्यक्तित्व में ऐसे ढल गया हूँ
लंबी नहीं जिंदगी, बड़ी चाहिए
भाव, दया, क्षमा के भर गया हूँ||