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Sheel Nigam

Abstract Tragedy

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Sheel Nigam

Abstract Tragedy

एक झूठा सत्य

एक झूठा सत्य

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अंजुरी-अंजुरी दीप जलाये बैठा था मन,

युग-युग की तनहाइयों को सहता था मन, 

मरीचिका के भ्रम में भटकता था मृग-मन

बिखरे स्वप्नों को स्वयं सहेजता था मन,

 

मूक दीपशिखा सा जलता तन लिए हुए,

चुभते शूल सा अहसास मन में लिया हुए,

एक झूठा सत्य .....सर्प-दंश सा,

समुद्र-मंथन से निकले गरल सा,

 

क्षण-क्षण हर पल को विषाक्त कर गया

एक अंतहीन वनवास का आभास दे गया

इन्द्रधनुषी स्वप्नों को रंगहीन कर गया

हृदय की व्यथा -वेदना बढ़ाता ही गया

 



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