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Devesh Dixit

Romance

4  

Devesh Dixit

Romance

एक झलक

एक झलक

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एक झलक जो उसको देखा,

देखता ही रह गया ।

मुख से कुछ न कह पाया,

अवाक मैं तो रह गया ।


मुस्कान ने उसकी लूटा मुझको,

क्या मैं अपना हाल बताऊँ ।

मेरा दिल न मेरा रहा और,

क्या जाके मैं रपट लिखाऊँ ।


आँखें थीं ऐसी नशीली,

कि मधुशाला भी फीका पड़ता ।

आँखें तो मेरी तब खुलतीं,

जब उसने पिलाना छोड़ा होता।


उसके केशुओं के आँचल में,

ऐसा मैं तो घिर गया ।

आँखें खुलते- खुलते रह गयीं,

मैं दोबारा सो गया ।


उसके रसभरे होंठों ने,

रसभरी को पीछे छोड़ दिया ।

उसके गालों की लाली ने,

संध्या को पीछे छोड़ दिया ।


उसकी वाणी की नरमी ने,

ऐसा मुझको जमा दिया ।

बस एक झलक उसको देखा है,

दिवाना मैं तो हो गया ।


ओझल हो गई जब नज़रों से,

मानो नींद से मैं टूट गया ।

लगा ऐसे विरह में उसकी,

शायर मैं तो हो गया ।



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