एक झलक
एक झलक
एक झलक जो उसको देखा,
देखता ही रह गया ।
मुख से कुछ न कह पाया,
अवाक मैं तो रह गया ।
मुस्कान ने उसकी लूटा मुझको,
क्या मैं अपना हाल बताऊँ ।
मेरा दिल न मेरा रहा और,
क्या जाके मैं रपट लिखाऊँ ।
आँखें थीं ऐसी नशीली,
कि मधुशाला भी फीका पड़ता ।
आँखें तो मेरी तब खुलतीं,
जब उसने पिलाना छोड़ा होता।
उसके केशुओं के आँचल में,
ऐसा मैं तो घिर गया ।
आँखें खुलते- खुलते रह गयीं,
मैं दोबारा सो गया ।
उसके रसभरे होंठों ने,
रसभरी को पीछे छोड़ दिया ।
उसके गालों की लाली ने,
संध्या को पीछे छोड़ दिया ।
उसकी वाणी की नरमी ने,
ऐसा मुझको जमा दिया ।
बस एक झलक उसको देखा है,
दिवाना मैं तो हो गया ।
ओझल हो गई जब नज़रों से,
मानो नींद से मैं टूट गया ।
लगा ऐसे विरह में उसकी,
शायर मैं तो हो गया ।