एक हद तक है
एक हद तक है
मोहब्बत में किसी की शिद्दतें एक हद तक है
दिन औ रात की ये मिन्नतें एक हद तक है
बड़ी रूमानी दुनिया चाहतों की ये सुना है
मग़र ये याद रखना जन्नतें एक हद तक है
तिरे पहलू में आके भूल जाऊँ हर अज़ीयत मैं
उम्र के साथ समझे क़ुरबतें एक हद तक है
कभी तन्हाई में आएगी यादें जब हमारी
तिरी खुदगर्ज़ सोहबतें एक हद तक है
लुटा दें जान या ख़ुद को मिटा डालें
ये जज़्बा चार दिन का उल्फ़तें एक हद तक है
हो ग़र नाराज़गी या फिर दीवानगी कोई
सुना है इश्क़ औ नफ़रतें एक हद तक है