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Husan Ara

Others

2.5  

Husan Ara

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एक पुरानी डायरी से

एक पुरानी डायरी से

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अक्सर भूल जाया

करता हूं

कुछ देर पहले की

ही बातें

उम्र का तकाज़ा है


पर सच बताऊँ

ज़हन में आज भी

सब पुरानी यादें ताज़ा हैं


सिर्फ माँ बाप का ही नहीं

चाचा दादा

सबका कहा मानते थे

सिर्फ अपनों को ही नहीं

दूर दूर तक

सबको जानते थे


पत्थरों से खेल

कभी कंचे कभी पतंग

रातों को बैठे दिये में

अपनों के संग


मिट्टी के घर, पानी के कुएँ

नीम की छाया

कितना सुहाती थी

नानी के घर जाने को

घोड़ा गाड़ी आती थी


ठंडी ठंडी सुबह में

बासी रोटी भी चाय के साथ

कितनी भाती थी

कितने खुश होते थे हम

जब अम्मा

हलवा बनाती थी


दिन इतने लंबे होते थे

शाम तक ही थक जाया

करते थे

रात सोने से पहले

सब मिलने आया करते थे

अनाज चावल की भरमार

रोज़ नई सब्ज़ियाँ लाया करते थे

तेरा मेरा कुछ नहीं था

सबको खाया खिलाया करते थे


बारिशें भी प्यारी थीं

खूब नहाते थे

ठंड के मौसम में

धूप का लुत्फ उठाते थे

गर्मी में पेड़ों की छाया में

लेटकर सो जाते थे

बसंत के तो क्या कहने

पतझड़ में भी फूल

खिलकर

लाल हो जाते थे


वो महफिले

वो मौसम

वो ज़ायके

वो रास्ते

नहीं भूल पाता हूँ

ये बात और है

शहरों की गलियों में

रास्ता भूल जाता हूँ


भूल जाता हूँ अक्सर

कहाँ मेरा घर कौन सा

दरवाज़ा है

पर सच बताऊँ ज़हन में

पुरानी यादें

अब भी ताज़ा हैं


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