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Prashant Kaul

Tragedy

3  

Prashant Kaul

Tragedy

एक और जिंदगी जीनी है

एक और जिंदगी जीनी है

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जिंदगी यूं ही गुजार दी हमने 

चार पहियों वाली कुर्सी पे।


एक खिड़की भी थी 

सामने देखने के लिए 

जिसमें देखकर आंखें 

चौंधिया जाती थी।


फिर भी देखते रहते थे 

उसे टकटकी लगाए 

मानो जैसे बरसों का 

खोया हुआ प्यार हो।


एक था यंत्र कमाल का 

पूंछ थी जिसकी आगे को

एक हाथ रहता था हमारा 

हमेशा उस पर

मानो स्पर्श के उसकी 

आदत सी हो गई थी।


रोज लिखा करते थे हम 

अपने मन की बातें उस खिड़की में

कभी लिखा करते थे अपनी गवाही

कभी पढ़ते थे फरियाद दूसरों की।


उम्र से पहले आ गई थी 

झुर्रियों चेहरे पर

सफेद पड़ गए थे बाल

और तोंद ने बदल दी थी चाल।


खुद को आगे लाने की

भागमभाग में

निकल जाता दिन यूं ही

थके हारे फिर लौटते जब घर को

सोझता कुछ और ना 

बस बिस्तर ही दिखता सोने को।


दिल में एक ख्वाहिश

रह गई थी बस बाकी

कि कभी मौका मिला 

तो एक और जिंदगी जीनी है !


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