Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Ravi Purohit

Abstract

4  

Ravi Purohit

Abstract

एक अप्रेषित पत्र

एक अप्रेषित पत्र

1 min
473



निंदयाती आंखों के ख्वाबों 

थोड़ी-सी तुम जाग रखना

कुम्हलाते कमलों की सांसों

थोड़ा तुम अनुराग रखना

पतझड़ का कीड़ा ना लागे 

कहीं भरोसे को,

मन-मोगरे में यकीं का

तुम थोड़ा-सा फाग रखना


मैं बस आ ही गया समझो

आंखों की पलकों तक

चाहत की सारंगी में तुम

थोड़ी-सी राग रखना

फिर खिलेगी नेह की बगिया

इसके मान की पाग रखना


गिद्ध दृष्टियां जाग रही है

नजरों को कुछ घाघ रखना

प्रीत सरोवर सूख न जाए

थोड़ी तो तुम आग रखना


लग न जाए नजर किसी की

काजल वाला भाग रखना

मैले मन का पहरा पसरा

नजरों में तुम दाग रखना

लो मैं आ गया नयनों में

प्रीत-नेह अथाग रखना


प्रीत बावरी लो संभालो

नेह की थोड़ी भांग रखना

रात तुम्हारे अब हवाले

मन ना कोई विराग रखना ।


लो संभालो !

ख्वाबों में लिखा खत

तुम्हारे नाम का

जो अभी अप्रेषित पड़ा है

यादों के लिफाफे में !



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract