एक अध्यापक की व्यथा कथा
एक अध्यापक की व्यथा कथा
STORY MIRROR के सभी प्रबुद्ध साथियों को मेरा प्यार भरा नमस्कार
दोस्तों,
प्राचीन काल से लेकर पिछले कुछ वर्षों तक गुरु को ईश्वर के समकक्ष रखा जाता था--- टीचिंग को नोबल प्रोफेशन माना जाता था----- लेकिन आज के समय में टीचर फटीचर हो चुका है-, आजकल के तथाकथित नेताओं ने स्कूलों को राजनीति का अड्डा बना दिया है, अध्यापक की गरिमा को धूल--धूसरित कर छात्रों के समक्ष बौना बना दिया --- आज के दौर के अध्यापक पर क्या बीत रही है इसी भाव को दर्शा रही है मेरी यह कविता----
पसीजती उंगलियों में,
चाॅक दबाए---
हाथों में रजिस्टर और किताब उठाएं,
उन्नत मस्तक और सधे कदमों से---
कक्षा की ओर बढ़ता अध्यापक,
वाणी के अंकुश से छात्रों को--
साथता--- अध्यापक,
केवल आंखों के रोष से--
बच्चों को सहमाता--- अध्यापक,
अपने शिल्पी हाथों की गढ़न से
कच्ची मिट्टी की मूर्तियों को
इंसान बनाता अध्यापक---
आज इन बच्चों से ही त्रस्त है--
बस इन बच्चों की चिरौरी में ही
व्यस्त है,
जिसकी जोरदार हुंकार से---
कक्षा में छा जाता था सन्नाटा,
अब छात्रों के समक्ष---
गिड़गिड़ाने में ही व्यस्त है।
6 घंटे की नौकरी---
24 घंटे की हो गई,
सुकून सब खो गया कहीं,
जीवन का मकसद
अब यह बेमतलब की
एक्टिविटीज हो गई,
दोस्त, संबंधी सब गैर हो गए,
स्कूल के बच्चे ही अब अहम हो गये,
बच्चों को हैप्पीनेस सिखाते -सिखाते
खुद तनाव का शिकार हो गए,
अध्यापक अब अपने जीवन से ही
बेजार हो गए,
डरे- सहमे से कक्षा में आते हैं
ना जाने किस ओर से
चाकू निकल आए,
सोशल मीडिया पर दोस्तों संग बतियाना,
अब सपना सा लगता है--
सारा दिन बस बच्चों को,
फोन घुमाना ही---
अब फर्ज सा लगता है,
सिलेबस और एक्टिविटीज के
चक्रव्यूह में फंसा
वह खुद को लाचार सा पाता है
ना बच्चे ही काबू में आते हैं,
ना अफसर ही खुश हो पाता है,
हर समय सर के ऊपर---
हमले का खतरा मंडराता है,
हाय! मैं क्यों बना अध्यापक???
बार-बार पछताता है,
तनावग्रस्त इस कशमकश में---
V.R.S. की ओर
बढ़ जाता है!!!
