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एहसास प्रेम का

एहसास प्रेम का

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तेरे आने से धड़कने लगता था ये दिल,

तेरे जाने से मायुसी छा जाती थी।बचपन में जब संग में खेला करते थे,

मन मयूर झूमने लगता था,

तुम भी तो बावली हो कर मुझ कान्हा की बन जाती थी राधा।


जैसे मीन ना रहती जल बिन,

चकोर ना रहता चन्दा बिन,

वैसे ही मुझको ना जाने क्यूँ चैन ना आती थी तुम बिन।

किरणों सी चमकती थी तुम संग में मेरे,

मुझको भी तुम लगता अंधियारा था।


याद है मुझको तुम्हारा वो जन्मदिन, जब मै ना आ पाया था,

भिजवाया था इक महंगा सा तोहफा...

नही चाहिए मुझको तोहफे़,

ख़ाली हाथ ही आ जाते,

इक पल को आ कर के अपना चेहरा दिखा जाते,

क्यों नही आए तुम

ये कह करके ठुकराया था।


कई बार तुमने तो मुझको कहना चाहा शायद,

पर मैं ना उन इशारो को समझ पाया था।

आज हुआ एहसास उन सब तेरी बातों का,

और मेरे दिल में होने वाली हलचल का,

आज हुआ एहसास है मुझको,

केवल तुम ही नहीं थी मेरे प्यार में पागल,

मै भी तुम पर मरता था,

ना समझा मै उन बातो को,

जो मै तुमसे करता था,

हाँ आज मै स्वीकारता हूँ,

मै तुमको चाहता हूँ...


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