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Gurudeen Verma

Abstract

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Gurudeen Verma

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दुश्मनी ही तो तुमसे मैं

दुश्मनी ही तो तुमसे मैं

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दुश्मनी ही तो तुमसे मैं, नहीं कर पाया अब तक।

करता तुमसे दुश्मनी तो, शेष क्या बचता अब तक।।

दुश्मनी ही तो तुमसे मैं -----------------------।।


चाहे तुम मानो कुछ भी, मेरा है प्यार पवित्र।

होता मैं सौदागर तो, मोल नहीं रहता अब तक।।

दुश्मनी ही तो तुमसे मैं ---------------------।।


गुस्सा भी आया कभी तो, दिखाई मैंने शराफत।

होती तुमसे नफरत तो, नाम मिट जाता अब तक।।

दुश्मनी ही तो तुमसे मैं ----------------------।।


कभी नहीं प्यासा रहा मैं, तेरी दौलत-ओ-जमीं का।

शर्म नहीं होती मुझमें तो, दामन लूट जाता अब तक।।

दुश्मनी ही तो तुमसे मैं -----------------------।।


खुदा से मैं तो हमेशा, मांगता हूँ तेरी खुशियाँ।

बेखबर होता तुमसे तो, बुझ जाता दीपक अब तक।।

दुश्मनी ही तो तुमसे मैं-----------------।।


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