दरम्यान
दरम्यान
इस दुनिया का उसूल भी अजीब है,
कभी हम इससे दूर तो कभी करीब है
सिसकियों से गूंज रहा है आसमान
आवाज़ है मुद्दतों से दबी हुई
मुंह पर है समाज की बंदिश
इस शोर के दरम्यान
मेरी लुटती आबरू पर क्यों
यह दुनिया खामोश है अब
देखती है यह तमाशा
खिड़कियों के दरम्यान
दुनिया की आँख में चुभते
मेरी आज़ादी के तीर क्यो
पैरो में कसी जंजीरे
रस्मों रिवाज के दरम्यान
कानों पर यू हाथ रखकर
ना सुने यह मेरी आवाज़
दब गई हैं ख्वाहिशें मेरी
उन खामोशी के दरम्यान
मेरी आंखों पर भी पट्टी
है अब समाज की
मैं भी हूँ एक गांधारी
इन कौरवों के दरम्यान
इस दुनिया का उसूल भी अजीब है,
कभी हम इससे दूर तो कभी करीब है