दोस्ती।
दोस्ती।
तेरी दोस्ती का है एहसान इतना,
जिसे मैं निभाने के काबिल नहीं हूं।
दोस्त बन तो गया हूं मगर जानता हूं,
दोस्त कहलाने के काबिल नहीं हूं।।
स्वार्थी बन मैंने सदा तुम को अपनाया,
तुमने कभी भी एहसास न कराया।
शर्मसार हूँ मैं गुनहगार हूं मैं,
तुम्हें मुंह दिखाने के काबिल नहीं हूं।।
जो तुम ने थामा था मुश्किल में दामन,
मगर फिर भी समझ न सका तुम्हारा पाक मन।
जो अब तक किया है वहीं क्या कुछ कम है,
तेरी मेहरबानी के काबिल नहीं हूं।।
चाहत है इतनी तेरी दोस्ती निभा लूँ,
अपने किए पर मैं जी भर के रो लूँ।
तुम्हारे सिवा मेरा कोई भी नहीं है,
यह दिल तुमको देने के काबिल नहीं हूं।।
समझा दिया तुमने दोस्ती का मतलब,
बुरे वक्त का साथी ही देता है सबब।
अब "नीरज" को छोड़कर मत जाना कभी भी,
मैं आजमाए जाने के काबिल नहीं हूँ।।