दोहे- कंकरीट के झील
दोहे- कंकरीट के झील
वृक्षों के जंगल सभी, रेतों में तब्दील। जल स्रोतों के गाँव में, कंकरीट के झील॥
गमलों में रौनक बढ़ा, बाग हुए वीरान। आवारा गायें फिरें, घर घर पलते श्वान॥
मानव की गतिशीलता, सड़कें करें बयान।इच्छाओं के पेड़ पर, मन चढ़ रहा उतान॥
पर्यावरणिक क्षोभ पर, जाग उठा है काल।कोरोना के रूप में, व्याधि हुआ विकराल॥
अनहोनी के संग मिल, होनी करे कुकृत्य।कालखंड के वक्ष पर, महाकाल का नृत्य॥
आजादी के नाम पर, जीत रहा है तर्क।प्राणवायु की नित कमी, तोड़ रहा संपर्क॥
नवयुग के निर्माण में, नहीं लगे यदि वृक्ष।रूठेगी सारी धरा, रूठेगा अंतरिक्ष॥