Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract Others

3  

Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract Others

दो गेंदे उछलती

दो गेंदे उछलती

1 min
214


अक्सर दो बातें गेंद सी उछलती

एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में

मेरे आंगन में खेल खेलती हैं।


एक आँखें अपनी बंद कर कहती है कि माँ श्रद्धा है।

दूसरी ठहाका लगा के बोलती है कि पत्नी हास्य है।


कभी एक ठहर जाती है प्रेम से बच्चे की मासूमियत देखती है।

तो दूसरी, ऊंची कूद लगाती है बड़ों की मासूमियत से दूर जाने को।


एक को रेंगना सुहाता है तब जब कुंडलिनी सर्प सी उठती है।

दूसरी फुफकार उठती है जब देखती है सांप आस्तीन में।


आकाशगंगा की तरह पहली हो जाती है वर्तुलाकार

जब होता है अन्याय मेरे किसी अपने पर।


दूसरी शिव हो तो भी शव में बदल जाती है,

दूसरों पे अत्याचार की ऊर्जा के प्रभाव से।


कभी दोनों मेरे दोनों हाथों में आ जाती हैं।

और कभी दोनों ही हाथ से फिसल जाती हैं।


लेकिन मैं तब ठगा सा रह जाता हूँ,

जब देखता हूँ दोनों को एक ही डिब्बे में बंद...

एक ही मन के दो विचार बन।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract