दो बूँदें
दो बूँदें
व्यथा में रुखसत हुई
अश्कों की दो बूँदों को
बरसात के मौसम में
बरखा की बूँदों ने
सहला दिया।
संगम में,
पूर्णतः समर्पण
तनिक भी न था विषाद
बस उन्माद ही उन्माद
नीर, क्षीर के भेद को मिटा दिया।
आत्मसात में रुखसार को
मोती सा झिलमिला दिया।
रुखसार की मलिका
नज़ाकत से अप्सरा सी
रही थी इतरा
पैगाम-ए-मोहब्बत
रुखसार पर झिलमिलाते
मोतियों की मनोहर छवि से
व्यथा में भी रही थी मुस्कुरा।