दिल का दफ्तर
दिल का दफ्तर
लेकर अर्ज़ी अपने दिल की!
पहुँचे हम उनके दिल के दफ्तर!!
सरसरी निगाहों से पढ़कर वो बोले!
छोड़ जाइए हम गौर फर्माएंगे!!
पल, दिन, महीने बीते नहीं साल!
छोड़कर एतबार हम फिर पहुँचे उनके द्वार!!
वो मुस्कुरा कर यूँ बोले अजी बेसब्र मत होइए!
अपने दिल की नगरी मे इत्र प्यार का घोलिए!!
आपका साथ हम इस तरह निभाएंगे!
ख़ुद होकर फ़ना हम रस्में इश्क़ निभाएंगे!!