दिखावे का चक्कर
दिखावे का चक्कर
दिखावे के चक्कर में बहुत बार पास की चीज नजर नहीं आती है
दूर की चीज में कभी हमारी नजर इतनी ज्यादा अंधी हो जाती है,
पास की चीज पास होकर भी हमको कभी नजर नहीं आती है
पर जब लगती ठोकर, याद आता पुराने पास के प्रिय मित्र का कर
तब तक बहुत देर हो जाती, मित्रता की ट्रेन कोसों दूर चली जाती है
जब आंखों से दिखावे की वो चमकीली रंगीन ऐनक उतरती है,
तब आंखों में दरिया होकर भी आंसू की एक बूंद भी न आती है
इसलिये जो करते है दिखावा, खुद के साथ ही करते है, छलावा
दिखावे की खुशी क्षणिक है, इससे पेट में कोई रोटी नहीं आती है
दिखावे के चक्कर में अनमोल दोस्ती भी शीशे सी टूट जाती है
जो बचे-खुचे रिश्ते है, हृदय के उनमें भी आग लग जाती है
इसलिये दिखावे को तू छोड़ देना, दिखावे को तू तोड़ देना,
सादा जीवन-उच्च विचार से बंद आंखों में रोशनी आती है
दिखावे से तो इस सूर्य से भी तम किरणें निकल आती है
दिखावे से बचने वाले की ही फ़लक पे तस्वीर नजर आती है