दिखावा क्यों
दिखावा क्यों


आपके खुदा आप स्वयं हैं
परदा नहीं जब कोई ख़ुदा से,
तो बंदों से से परदा करना क्यों
अपनी एकरसता खोना क्यों ?
जो भीतर नहीं है ,वह नहीं ही है
उसके दिखावे का फ़ायदा क्या,
यह तो आपको ज्ञात ही है
जो भीतर है वही मायने रखता है ।
भीतर से प्यार आ रहा
या भीतर से क्रोध आ रहा,
जो भीतर से आ रहा
उसे बाहर प्रकट करना अच्छा ।
बाहर भी आपके बंदे हैं
उनसे क्या डरना ,
क्या परदा करना
किस बात की चिन्ता करना।
प्रकृति के हाथों सौंप दी
जब अपने जीवन की बागडोर,
फिर सब परम्परायें टूटें या रहें
कोई अन्तर न पड़ेगा आप को।
अपने भरोसे जीना शुरू कर दें
दूसरों के भरोसे जीना क्या ?
अन्दर बाहर विभाजित होकर जीना क्या?
प्रकृति के सामने किसी की बिसात क्या ?