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दीवानगी

दीवानगी

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दीवानगी की हद से गुजर गये

मंजिल थी सामने फिर भी मुड़ गए

पैरों में डाली थी जंजीर ए वफा की

ईमान से हमने वफाएं अदा की,


अदाओं पर उनकी शायद

फिसल गए दीवानगी की

हद से गुजर गए, ना मैं

 मुझ में ना मेरी तमन्ना,


हमने तो सीखा बंद आंखों से चलना

चाह रहे थे सभी को हँसाना

मगर भूल गए नहीं सच यह फसाना

कर्मों की राह की वेदी पे चढ़ गए 

दीवानगी की हद से गुजर गए।।


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