दीवाली के दीप (गीत)
दीवाली के दीप (गीत)
आज नगर की डगर डगर पर
दीवाली के दीप जल गये ।।
सुमन सुमन के सीपों ने है
निज मुख पंखुड़ियों का खोला ।
तन की कोमल मृदु डालों पर
मन का हंस अनोखा डोला ।
मौन मूक इन अधरों को हैंं
फिर से जीवन गीत मिल गये ।
आज नगर की डगर डगर पर
दीवाली के दीप जल गये ।।
फुलझड़ियों के तारों में है
अरमानों की सुंदर डोली ।
आज अनार पटाखे भी हैं
आपस में कर रहे ठिठोली ।
अंधकार की भीषण कारा
को तारे बन दीप छल गये ।
आज नगर की डगर पर
दीवाली के दीप जल गये ।।
फिर गोरी ममता की देखो
दीप माल से सज्जित होकर,
चढ़ी अटारी झाँक रही है
मन की सब दुविधाएँ खोकर ।
झिलमिल झिल करते प्रदीप में
मानो मन के मीत मिल गये ।
आज नगर की डगर डगर पर
दीवाली के दीप जल गये ।।
अविश्वास ने घूंघट काढ़ा
ली ममता ने मौन विदाई ,
विद्वेषों ने ईर्ष्या के संग
युद्ध किया तो मुंहकी खाई ।
मानवता के सुंदर साजों
को सुमधुर संगीत मिल गये ।
जगमग घर की देहरियों पर
दीवाली के दीप जल गये ।