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डॉ. रंजना वर्मा

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डॉ. रंजना वर्मा

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दीवाली के दीप (गीत)

दीवाली के दीप (गीत)

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आज नगर की डगर डगर पर 

        दीवाली के दीप जल गये ।।


सुमन सुमन के  सीपों ने है 

निज मुख पंखुड़ियों का खोला ।

तन की कोमल मृदु डालों पर 

मन का  हंस अनोखा डोला ।


मौन मूक इन अधरों को हैंं 

        फिर से जीवन गीत मिल गये ।

आज नगर की डगर डगर पर 

         दीवाली के दीप जल गये ।।


फुलझड़ियों के तारों में है 

अरमानों की सुंदर डोली ।

आज अनार पटाखे भी हैं 

आपस में कर रहे ठिठोली ।


अंधकार की भीषण कारा 

         को तारे बन दीप छल गये ।

आज नगर की डगर पर 

         दीवाली के दीप जल गये ।।


फिर गोरी ममता की देखो 

दीप माल से सज्जित होकर,

चढ़ी अटारी झाँक रही है 

मन की सब दुविधाएँ खोकर ।


झिलमिल झिल करते प्रदीप में 

         मानो मन के मीत मिल गये ।

आज नगर की डगर डगर पर 

         दीवाली के दीप जल गये ।।


अविश्वास ने घूंघट काढ़ा

ली ममता ने मौन विदाई ,

विद्वेषों ने  ईर्ष्या के संग 

युद्ध किया तो मुंहकी खाई ।


मानवता के सुंदर साजों 

          को सुमधुर संगीत मिल गये ।

जगमग घर की देहरियों पर 

          दीवाली के दीप जल गये ।


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