दीप
दीप
दीप ज्योति परमब्रह्म: ,
दीप ज्योति जनार्दन: ।
दीपो हरति में पापम् ,
दीप ज्योति नमोस्तुते:।
यादगार दीपावली मनाएं,
बल्ब लगे हो चाहे हजार ,
पर दीप भी जरूर जलाएं ।
दीपक तेल का हो या ज्ञान का,
दोनों दीपों का महत्व बड़ा है ।
दीप से दीप जलेगा ,बढ़ेगा ज्ञान से ज्ञान,
जब जलते दीपक मिलता शीतल प्रकाश ,
सुकिरण और देव आभा से,
रहता सदा मन प्रफुल्लित ,
बढ़ता सुख शांति और सुविचार,
मन मस्तिष्क की विकृतियां दूर जाती ,
जब दीपक लौ की आभा-प्राण ,
सांसो में -मन- मस्तिष्क में समाती,
बल्ब की रोशनी हो दीपक से हजार ,
पर बल्ब का दीपक से नहीं कोई पार,
युगों-युगों से जलता हुआ यह दीपक,
जब तक रहेगी दुनिया सदा जलता रहेगा।
देते हुए सहकार और सहयोग का संदेश,
परहित के खातिर सदा मचलता ही रहेगा।
हम हैं सनातनी यज्ञ ही है हमारी पहचान,
अपनी मनचाही चीजों को होम कर,
रखते हैं हम सदा इस धरा का ध्यान,
न पड़तें हैं कभी भी स्वार्थ में,
परमार्थ ही अपनी पहचान।
जितनी सी हो थोड़ी अपनी संपदा ,
क्यों न बो दें उसे परमात्मा के खेत में,
अंकुरित होकर सदा फले-फूले ,
धरती के जीवो को रास आए,
जरूरत से थोड़ा उपयोग करूं ।
न संग्रह करूं चूहे सा धनकुबेर बनूं
न सांप की तरह कुंडली मारकर बैठ जाऊं,
सारा जहां अपना परिवार हो।
वसुधैव: कुटुंबकम्।
सफल हो परिकल्पना।
कोई जरूरी नहीं सब के,
पास अकूत धन -बल हो,
पर छोड़े ना अपनी गिलहरी प्रयत्ना,
होम करने का यदि मनो घी- धूप,
हवन-सामग्री आदि कुछ भी न हो,
5 दीपक जलाकर ही करें दीप यज्ञ,
अगर साधन-समय हो न्यून भी,
न सकुचाएं करें ज्ञान - दीप यज्ञ।
देव कार्यों में सदा ही भागी रहें।
दीप से दीप जले एक से एक बढ़े।
सवार न हों लक्ष्मी अपनी उल्लू पर।
अपनी माता लक्ष्मी तो नारायण संग।
राजहंस पर सदा ही विराजमान रहें।
अकेली लक्ष्मी रहेंगी फिर तो,
दिन में न दिखेगा हमें उल्लू सा,
सारे रास्ते हम भटक जाएंगे।
जब मेरी माता लक्ष्मी-संग ,
सदा मेरे प्रभु नारायण हो।
कर्म होंगे हमारे सुकर्म- सत्कर्म,
कहते हैं लक्ष्मी हैं बहुत ही चंचल,
जब तक हमारे जीवन में बनी है गति,
तब तक हम माता लक्ष्मी के कृपा पात्र हैं।
नारायण-पुत्र सा धारण किए रहे गुण सदा,
तक बनी रहेगी माता की कृपा और साथ,
आइए एक यादगार दिवाली मनाए।
बल्ब लगे हो चाहे जितने हजार,
पर ज्ञान का एक दीप भी जलाएं।